knowledge of Art - पेंसिल और रबड़
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पेंसिल और रबड़
बचपन से बूढ़े होने तक हमारे जीवन में हम पेंसिल और रबड़ (eraser) का इस्तेमाल करते आ रहे है। बचपन में प्रीस्कूल में हमे ABCD की शुरुवात ही पेंसिल, रबड़ (eraser) और पेपर से की जाती है पेंसिल और रबड़ (eraser) की एक विशेषता है की उसका लिखा रबड़ (eraser) से मिटाया जाता है। और वो भी आसानी से, इसीलिए पेंसिल और रबड़ (eraser) का इस्तेमाल हम ज्यादा से ज्यादा करते है। और चित्रकारों के लिए पेंसिल और रबड़ (eraser) मतलब एक महत्वपूर्ण अवजार ही होता है। उसके बिना उनका जीवन ही अधूरा है। लेकिन आपने कभी यह सवाल उठाया है? पेंसिल और रबड़ (eraser) की खोज किसने और कब की गई ? पेंसिल और रबड़ (eraser) में क्या होता है ? तो आइए उनके इतिहास के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी ले।
पेंसिल:
पेंसिल में ग्रेफाइट या सीसा होता है १५ वी सदी में सीसे का इस्तेमाल सिर्फ तोफो और बंदूकों के सांचे बनाने के लिए होता था।
पेंसिल शब्द penisillus से लिया गया उसका लैटिन में अर्थ है 'पूंछ' क्योकि पुराने ज़माने में animals के पूछ का इस्तेमाल drawing ब्रश के लिए किया जाता था। पेंसिल के खोज का पेटेंट फ्रांस के एक सेना अधिकारी के पास है। उसका नाम 'निकोलस जैक्स कॉन्टी' था। सन १७९५ में उसने एक बक्से में ग्रेफाइट , पानी और मिटटी मिलाकर उसे सूखने के लिए रखा और सूखने के बाद उसे भट्टी में जलाया बाद में उसकी सलाई बनाकर दो लकड़ी के टुकड़े में रखा और ऐसे पेंसिल बन गयी। और तभी से इंसान पेंसिल का उपयोग अपने जीवन में करता आया है।
रबड़ (eraser) :
पता है? जो लोग पेंसिल का इस्तेमाल करते है वह रबड़ (eraser) के बिना अधूरे होते है क्योंकि पेंसिल से लिखा अगर गलत हो जाये तो उसे मिटने के लिए रबड़ (eraser) की जरूरत होती है। इस लिए पेंसिल के साथ रबड़ (eraser) का होना जरूरी है। आज कल रबड़ (eraser) अलग - अलग आकारमान के और रंगों के बाजार में मिलते है। और बच्चों में भी इसके लिए उत्सुकता होती है।
रबड़ का अविष्कार होने से पहले लोग bread crumbs का इस्तेमाल करते थे। और लिखने में गलती करने से पहले उसे सही करने की कोशिश करते थे।
सन १७७० तक पौंधो की बनी प्राकृतिक साधारण रबड़ से रबड़ (eraser) की खोज नहीं हुई थी। उसी साल Edward Narine नाम के एक इंग्लिश इंजीनयर ने पेंसिल की निशनियाँ मीटाने के लिए गलती से bread crumbs के बजाय साधारण रबड़ का इस्तेमाल किया और पेंसिल का बनाया निशान मिटा दिया। और इस तरह पहले रबड़ (eraser) का अविष्कार हो गया। उसने वैसे ही और रबड़ (eraser) बनाकर उसे बेचना शुरू कर दिया। उसे gum elastic कहा जाता था। लेकिन उसमे एक खराबी थी की अलग अलग वातावरण में उसमे प्रक्रिया होकर वह ख़राब हो जाता था और उसमे अजीब सी गंध आ जाती थी। फिर इस समस्या है हल १८३९ में Charls Goodyear नाम के एक संशोधक ने निकला वह rubber vulcanization कहा जाता था। इस प्रक्रिया में साधारण रबड़ को अधिक टिकाऊ बनाया जाता है। यही आज का रबड़ (eraser) है। फिर Hyman Lipman ने पेंसिल के पीछे रबड़ (eraser) जोड़ के उसे और बेहतर बनाया।
यह है पेंसिल और रबड़ (eraser) संक्षिप्त इतिहास।
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